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गुरुवार, 22 जुलाई 2010
सचिन की आत्मकथा का खूनी खेल
अरे, ये क्या सुन रहा हूँ. तुरंत तो विश्वास भी नहीं होता लेकिन इतने सारे खबरिया चैनल इसी पर चिल्ल-पों करते नज़र आ रहे हैं कि अब विश्वास के अलावा कोई रास्ता भी नहीं है. और ये लो… साक्षात आप खुद भी सामने आ गए. घोषणा करते हुए. आपकी तबीयत तो ठीक है न… ये क्या पागलपन है सचिन.
अच्छा-खासा ब्रेक लेकर और इलाज कराकर फिर से फिट हुए हो. पर इस घोषणा से तो एकदम नहीं लगता. किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ. अपने बल्ले से रनों की धारा बहाते थे तो कितनी तारीफ होती थी, वाहवाही मिलती थी पर तुम्हारे जैसे मृदुभाषी के मुंह से खून बहाने की बातें विचलित करती हैं. डरावनी लगती हैं.
जिन हाथों ने खेल भावना को एक आयाम दिया वो हाथ अब खून के हस्ताक्षर करेंगे. जिस मुंह पर भोलेपन के भाव किसी विरोधी टीम के आक्रामक खिलाड़ी को भी रिझा लेते थे, उस भोले-भाले सचिन की खूनी हस्ताक्षर वाली आत्मकथा अब लोगों की धारणा बदलेगी. जो व्यक्ति सदा यह समझाता रहा कि क्रिकेट खेल है और इसे खेल की तरह देखिए, सियासी पैतरे, कूटनीति, धर्म, देश की नज़र से नहीं, उसी व्यक्तित्व की अपनी कहानी खून के रंग में रंगी-पुती होगी. इसे कैसे सही ठहराया जा सकता है मास्टर ब्लास्टर.
आप तो कम से कम ऐसे नहीं हैं जिसे ख़बरों में रहने के लिए या अपनी किताब बेचने के लिए इस तरह का नाटक रचना पड़े. खून ही बहाना है तो और कीर्तिमान खड़े करते हुए बहाइए, भारत में खेलों की बदतर स्थिति पर बहाइए, और जी करे तो देश-समाज की सेवा में बहा दीजिए… किताब पर खून बहाने का क्या मतलब है, समझ में नहीं आता. कहीं ऐसा तो नहीं कि ठाकरे बंधुओं के साथ मंच पर आते-आते आपको भी खून बहाने की परंपरा अच्छी लगने लगी है. या फिर आपको लगता है कि जबतक आपकी महान क्रिकेट गाथा खून से लथपथ नहीं होगी, लोगों को मज़ा नहीं आएगा.
वैसे ये पूरा खूनी खेल आपने पैसों के लिए खेला है, ऐसा मालूम देता है. वरना सचिन के खून वाली किताब सबको मिलती. हालांकि ऐसा है नहीं, कुल 10 किताबों में ही आपका खून झलकेगा. कागज की लुगदी खून में सानी जाएगी. पहला पन्ना रक्ताभ नज़र आएगा. 852 पन्नों वाली ये 10 विशेष किताबें लगभग साढ़े तीन लाख रूपए की होंगी. यानी 10 किताबों के लिए 35 लाख मिलेंगे.
सोचिए, अगर 50-100 ग्राम खून के लिए मास्टर ब्लास्टर इतनी कीमत लेने जा रहे हैं तो उस व्यक्ति से सचिन कितने पैसे ले लेंगे जिसे वो खून का एक यूनिट इलाज के दौरान देंगे. कल को सचिन अगर अपना खून किसी को देने की सोचें और वो उसका मूल्य देना चाहे तो आंकड़ा करोड़ से ऊपर जा सकता है. जिस खेल को आपने खेल की तरह खेला है (शायद मैं ग़लत हूं), उसे अब खूनी खेल में बदल देने की क्या ज़रूरत थी सचिन. तुम्हारे इस खेल से तुम्हारा कोई भी प्रशंसक शायद ही खुश हुआ हो…
Written By पाणिनि आनंद
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