
मौजूदा दौर में इससे ज्यादा बेहतर महंगाई की चुभन को शायद कोई नहीं बयान कर सकता कि ‘सखी सैंय्या तो खूब ही कमात है’…… ठीक ही कहा है कि सारी कमाई एक तरफ और बढ़ती मंहगाई एक तरफ।
यह बेतहाशा महंगाई का ही आलम है कि कितना भी कमा लें इस सुरसा जैसी मंहगाई के दानव के आगे सब स्वाहा है।
सब्जी़,दाल ,तेल, घी,पेट्रोल ,डीज़ल, यात्री किराया,रोज़मर्रा के खर्चे किस किस मोर्चे की बात करें महंगाई तो हर मोर्चे पर आम आदमी की खून चूसने को बांहे खोले खड़ी है और डराती है कि किस तरह से मेरे चंगुल में खुली सांस लेने को हिमाकत करोगे।
आम आदमी क्या चाहता है कि कैसे इज्ज़त के साथ उसके परिवार का पेट पल जाये उसके खर्चे पूरे पड़ जायें, मगर क्या करें महंगाई डायन खाये जात है…….मंहगाई की मार ने आम आदमी के पेट पर लात मारी है पेट भरने को जरुरी राशन, सब्ज़ी, तेल घी, रसोई गैस आदि चीजों पर सबसे ज्यादा मार पिछले कुछ समय में पड़ी है।
घर से लेकर बाज़ार तक सब जगह एक ही आग है, महंगाई की आग। हालांकि ये आग हमेशा से आम जनता को जलाती आ रही है लेकिन इस बार तो हद हो चुकी है।
पेट्रोल डीज़ल के दाम क्या बढ़े, घर की रसोई से सब्ज़ियां ग़ायब होने लगीं। चावल, दालें और आटे की दाम ने तो घर का बजट बिगाड़ रखा है। आम आदमी करे तो क्या करे, मजबूर है महंगाई की आग में जलने के लिए।
सरकार खामोश है उसे पता है कि महीने-दो महीने में तो जनता को महंगाई की आदत पड़ ही जाएगी। पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने के बाद उसका असर हर चीज़ की क़ीमत पर पड़ने लगा है। ट्रक मालिकों ने माल भाड़े में बढोत्तरी का फैसला लिया और बाज़ार में डीज़ल की मार नज़र आने लगी।
बताने की जरुरत तो नहीं पर चीनी की कड़वाहट का जिक्र करना बेहद लाज़िमी है जिसके चलते आम आदमी के बजट का दीवाला निकला तो मुनाफाखोरों की हर दिन दीवाली मनाना किसी से छिपा नहीं है।
दूध के बढे दामों से बच्चों की खुराक में कटौती करनी पड़ी है ।महंगा डीज़ल पेट्रोल, महंगा राशन,मंहगी सब्ज़ियां, महंगा किराया, महंगी शिक्षा, कोई भी ऐसा मोर्चा नहीं जहां आम आदमी इससे पार पा सके।
ऐसा नहीं है कि महंगाई के मोर्चे पर आम आदमी का साथ देने कोई नहीं खड़ा है विपक्षी दल है ना इसमें उसका साथ देने के लिए। उसके लिए चाहें बंद का सहारा लेना पड़े चाहे कोई आंदोलन चलाना पड़े।
हालांकि ये दीग़र बात है कि इन्हें भी आम आदमी का ख्याल तभी आता है जब वो सत्ता की मलाई का स्वाद लेने से वंचित होते हैं।यह भी किसी से छिपा नहीं है कि इस तरह के काम करने का मकसद किसी भी तरीके से अपने लिए सत्ता वापसी की राह को आसान बनाना भर है।
‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ’ का नारा देकर सत्ता का सुख दोबारा भोग रही कांग्रेस पार्टी का एजेंडा तो साफ है कि तुम मुझे सत्ता दो मैं महंगाई का इतना बोझ दूंगी कि तुम्हारी कमर झुकी ही रहे।
चलूं थैला भरके रुपये लेकर थैली में कुछ राशन और सब्ज़ी ले आंऊ खाने का इंतज़ाम कर लूं क्योंकि गाने की लाइन डरा रही है कि महंगाई डायन खाये जात है…….
Written by रवि वैश्य
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